Monday, 17 August 2015

बच्चे का जन्म किस पाये में

बच्चे का जन्म किस पाये में

किसी परिवार में बच्चे का जन्म होना  परिवार में वंश वृद्धि का परिचायक है १ बच्चे के जन्म के साथ ही बच्चे की स्वस्थता जानने के  उपरांत सबसे पहले सबका  यही प्रश्न होता है कि बच्चे का जन्म किस पाये में हुआ है १ शास्त्रों में मुख्य रूप से चार पायों का वर्णन मिलता है :-
1.  चांदी का पाया   2.  ताँबे का पाया  3.  सोने का पाया  4.  लोहे का पाया
  हर पाये में जन्मे बालक का शुभाशुभ फल भिन्न होता है  १

बालक/बालिका का जन्म किस पाये में हुआ है ये निम्न विधि से आसानी से जाना जा सकता है १
जन्म पत्रिका में लग्न से चन्द्रमा किस भाव में है  ये देखा जाता है जैसे :-

  • जन्म लग्न से  चन्द्रमा यदि  पहले, छठे या ग्यारहवें  भाव में हो तो बच्चे का जन्म सोने के पाये में हुआ है १ 
  • यदि दो, पांच या नौवें  भाव में  चन्द्रमा है तो बच्चे का जन्म चाँदी के पाये में  हुआ है १  
  • जन्म लग्न से  चन्द्रमा यदि  तीसरे , सातवें  या दसवें   भाव में हो तो बच्चे का जन्म ताम्बे  के पाये में हुआ है १ 
  • जन्म लग्न से  चन्द्रमा यदि  चौथे, आठवें  या बारहवें   भाव में हो तो बच्चे का जन्म लोहे  के पाये में हुआ है १ 
इस तरीके से कुंडली में देखकर आसानी से बताया जा सकता है की बच्चे का जन्म किस पाये में हुआ है 

अब प्रश्न आता है कि किस पाये का क्या फल होता है तो अगर बच्चा चांदी के पाये में हुआ है तो बच्चा परिवार में सुख समृद्धि लेकर आता है १ बच्चा सुखों में पलता है १ परिवार का मान सम्मान में वृद्धि होती है १ माता पिता की तरक्की होती है १ अगर बच्चा सोने के पाये में पैदा हुआ है तो ज्यादा शुभ नहीं है १ ऐसा बच्चा रोगी होता है तथा बचपन में ही इस बच्चे की दवाये शुरू हो जाती हैं १ परिवार की शुखशान्ति भंग हो जाती है १ पिता को शत्रुओं का सामना करना पड़ता है और धन हानि भी हो सकती है १ इसकी शांति के लिए बच्चे के वजन के बराबर  गेहू का दान करना चाहिए १ अगर संपन्न हो तो सोने का दान भी किया जा सकता है १ ताम्बे के पाये में उत्पन्न बच्चा पिता के व्यापार  में वृद्धि और सुखसमृद्धि लेकर आता है १ लोहे के पाये में पैदा हुआ बच्चा परिवार के लिए भारी होता है १ बच्चा रोगी रहता है १ पिता के लिए बच्चा विशेषतया भारी होता है १ परिवार में कोई शोकप्रद घटना होती है १ लोहे के पाये में बच्चे का जन्म हो तो शास्त्रानुसार ग्रह शांति अवश्य करवानी चाहिए १ 

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Wednesday, 5 August 2015

श्रावण मास में शिव आराधना का महत्व

श्रावण मास में शिव आराधना  का महत्व
       वेदांत दर्शनों और इतिहास ग्रंथों में शिवजी के पारब्रह्म तत्व की विवेचना की गई है १ वेदमंत्रों में भी शिव की संस्तुति एकादश अनुवाकों  में की गई है जो रुद्राध्यायों  के  नाम से प्रसिद्ध है १  भगवान शिव शांत हैं लेकिन उनके  रूद्र  अशांत हैं १   रुद्रों की संख्या ग्यारह है और हनुमानजी ग्यारहवें रूद्र के अवतार माने जाते हैं १ ऋग्वेद में आये उदाहरणों से स्पष्ट है कि रुद्रों को सामान्यतः  आंधी तूफ़ान का देवता माना जाता है १ जब ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में प्रचंड गर्मी पड़ती है और पृथ्वी साक्षात  अग्निकुंड बन जाती है तब पृथ्वी पर रुद्रों का साम्राज्य व्याप्त होता है १  इन रुद्रों की प्रसन्नता के लिए और इनके क्रोध से रक्षा के लिए "रुद्राभिषेक "  किया जाता है १ श्रावण  मास में दूध, घी, शहद, दही और गंगाजल से शिवाभिषेक करने से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है १

श्रावण व भाद्रपद में वर्षा ऋतु  आ जाती है , वायुमंडल में शीतलता आ जाती है, गर्म हवा अर्थात रुद्रों का प्रभाव कम हो जाता है और आर्द्र हवा  अर्थात शिव तत्व  का प्रभाव बढ़ने लगता है १ शिव तत्व भोले  स्वभाव  और शीघ्र प्रसन्न होकर वरदान देने का प्रतीक है १ श्रावण और भाद्रपद में सूर्य कर्क राशि (जल राशि ) में गोचर करता है इसलिए भोले शंकर  का गंगाजल से अभिषेक करने का विधान है १

शतपथ ब्राह्मण में उल्लेख  कि :-
"यज्ञेन वै देवादिवमुपोद,  क्रामन्नाथ योअयम् देवः पशुनामिष्टे १
स इहा हियत तस्माद वास्तव्य, इत्याहुर्वास्तौ हि  तदहियत ११ "

अर्थात रुद्रों के क्रूर स्वाभाव के कारण उन्हें देवकोटि  से अलग रखा गया है १ जब देवताओं ने स्वर्ग प्राप्त किया तो रूद्र रूद्र पृथ्वी पर ही रह गए थे १ वैदिक यज्ञों में देवताओं को आहुति देने के बाद जो अपशिष्ट बच जाती थी जिसे रूद्र भाग कहते हैं उस पर रुद्रों का अधिकार मिला और उससे रूद्र प्रसन्न हो जाते हैं १ प्राचीन काल से ही ज्येष्ठ व आषाढ़ मास में वर्षा की कामना से बड़े बड़े यज्ञ किये  हैं जिनसे रूद्र तृप्त हो जाते हैं और तभी शिव तत्व का उदय  होता है १ मतलब यज्ञ से रूद्र प्रसन्न होने से ही वर्षाकाल में वर्षा होती है १

भगवान शंकर सर्वसमर्थ हैं, आशुतोष हैं, सब कुछ प्रदान कर सकते हैं १ रोग से मुक्ति के लिए, आयु वृद्धि  के लिए, चिंता मुक्ति के लिए, सुख-शांति के लिए, कुंआरी कन्यायें  मनोनुकूल वर  की कामना से, सुहागिन स्त्रियां पति-पुत्र की दीर्घायु के लिए और अनेक कामनाओं की पूर्ति के लिए  शिवजी की आराधना  करती हैं १ इस श्रावण मास में की गई शिव पूजा का  पुण्य वर्ष भर तक की गई पूजा के समान है १ प्रतिदिन शिव  आराधना शुभ होती है  परन्तु जो प्रतिदिन नहीं कर सकते वे केवल श्रावण मास में एक  माह तक नियमित पूजा करें तो भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है १

रूद्र और शिव, महाकाल महादेव के ही दो रूप हैं जिसमे एक उष्ण है और एक शीतल १
"शिवोअह्म शिवोअह्म  शिवः  केवलोअहम शिवमस्तु"

कामना प्राप्ति के लिए शिवाराधना की विधि निम्न प्रकार हैं:-

  • भगवान शिव को  पायस (खीर) अर्पित  करने से राज सम्मान प्राप्त होता है 
  • कमल पुष्प से भगवान शिव की आराधना करने से ऐश्वर्य में वृद्धि होती है 
  • मधु एवं घी मिश्रित पायस भगवान शिव पर अर्पित करने से चमत्कारिक रूप से धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है 
  • जो लोग लक्ष्मी की कामना करते हैं उन्हें बिल्व पत्रों एवं शंखपुष्पी के पुष्पों से  भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए 
  • अर्क वृक्ष के पुष्पों, श्वेतोत्पल तथा जपाकुसुम के पुष्पों से भगवान शिव की आराधना करने से शत्रुओं का नाश होता है और स्वयश की वृद्धि होती है १ 
  • श्रावण  में जल द्वारा सहस्रघटाभिषेक  और "रुद्राष्टाध्यायी" का पाठ करने से भी समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है. 
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